सोमवार, 17 नवंबर 2008

दिल में हो विश्वास

दिल में हो विश्वास तो ख़तरा नहीं मंझधार का
है भँवर तो दोस्तो! देखा हुआ सौ बार का

हम अगर समझे हैं तो कहती है कलाई की घड़ी
साथ देना है सभी को वक़्त की रफ्तार का

प्रेम की बाहों में है सिमटा हुआ सारा जगत्
जो नहीं पूजाघरों का, वो है मज़हब प्यार का

ख़ुश्क जंगल को भिगोदें तुम अगर सहयोग दो
आओ अब मिल-जुल के मोड़ें रुख़ नदी की धार का

आदमी सचमुच वही है, जिसका जीवन-सार हो
दर्द भी सारे जहां का, ध्यान भी घर-बार का

डा गिरिराजशरण अग्रवाल

4 टिप्‍पणियां:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

आदमी सचमुच वही है, जिसका जीवन-सार हो
दर्द भी सारे जहां का, ध्यान भी घर-बार का

another woderfull mile stone
excellant writing

डा गिरिराजशरण अग्रवाल ने कहा…

धन्यवाद दिगम्बर जी
गिरिराजशरण अग्रवाल

Prakash Badal ने कहा…

डॉ.साहब बहुत ही ख़ूबसूरत ग़ज़ल

kshama ने कहा…

"है भँवर तो दोस्तों ! देखा हुआ सौ बार का !"
एक गीत अनायास ही याद आ गया...
'गमसे क्या घबराना, गम सौ बार मिला..'