मंगलवार, 2 दिसंबर 2008

दीप जलाना न छोड़ना

रोकेंगे हादिसे मगर चलना न छोड़ना
हाथों से तुम उम्मीद का रिश्ता न छोड़ना

झेली बहुत है अब के बरस जेठ की तपन
बादल, किसी के खेत को प्यासा न छोड़ना

ले जाएगी उड़ा के हवा धुंध का पहाड़
शिकवे भी हों तो मिलना-मिलाना न छोड़ना

तुम फूल हो, सुगंध उड़ाते रहो युँही
औरों की तरह अपना रवैया न छोड़ना

तुम ही नहीं हो, राह में कुछ दूसरे भी हैं
आगे बढ़ो तो दीप जलाना न छोड़ना

डा गिरिराजशरण अग्रवाल