रोकेंगे हादिसे मगर चलना न छोड़ना
हाथों से तुम उम्मीद का रिश्ता न छोड़ना
झेली बहुत है अब के बरस जेठ की तपन
बादल, किसी के खेत को प्यासा न छोड़ना
ले जाएगी उड़ा के हवा धुंध का पहाड़
शिकवे भी हों तो मिलना-मिलाना न छोड़ना
तुम फूल हो, सुगंध उड़ाते रहो युँही
औरों की तरह अपना रवैया न छोड़ना
तुम ही नहीं हो, राह में कुछ दूसरे भी हैं
आगे बढ़ो तो दीप जलाना न छोड़ना
डा गिरिराजशरण अग्रवाल
मंगलवार, 2 दिसंबर 2008
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4 टिप्पणियां:
तुम ही नहीं हो, राह में कुछ दूसरे भी हैं
आगे बढ़ो तो दीप जलाना न छोड़ना
वाह हर बार की तरह खूब सूरत बोल
नया अंदाज, क्या बात है
बहुत खूब लिखा,
तुम ही नहीं हो, राह में कुछ दूसरे भी हैं
आगे बढ़ो तो दीप जलाना न छोड़ना...बहुत सुन्दर. दिल को छूने वाली पंक्तियां !!
कभी हमारे शब्द-सृजन (www.kkyadav.blogspot.com) पर भी आयें.
आपकी गज़लें पढ़ती रहती हूँ ..टिप्पणी देने की क़ाबिलियत नही रखती ..इसलिए ख़ामोशी से लौट जाती हूँ ..
आप एक दीप शिखा की भाँती हैं ..
http://kavitasbyshama.blogspot.com
http://shamasansmaran.blogspot.com
http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com
http://shama-kahanee.blogspot.com
Apnee ek chhoti-si,adna-si rachna aglee tippnee me pesh karne kee jurrat karne ja rahee hun...
जल उठी" शमा....!"
शामिले ज़िन्दगीके चरागों ने
पेशे खिदमत अँधेरा किया,
किया तो क्या हुआ?
मैंने खुदको जला लिया!
रौशने राहोंके ख़ातिर ,
शाम ढलते बनके शमा!
मुझे तो उजाला न मिला,
ना मिला तो क्या हुआ?
सुना, चंद राह्गीरोंको
हौसला ज़रूर मिला....
अब सेहर होनेको है ,
ये शमा बुझनेको है,
जो रातमे जलते हैं,
वो कब सेहर देखते हैं?
शमा
Behad adnaa-si wyakti hun, phirbhi himmat kee hai..!
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