सोमवार, 17 अगस्त 2009

सुगंधित फूल बन जाओ

तपन लू की जो हरियाली उठाकर ले ही जाएगी
घटा भी सागरों का जल उड़ाकर ले ही जाएगी

सुगंधित फूल बन जाओ, खिलो डाली की बाहों पर
हवा खुशबू की साँसों को बहाकर ले ही जाएगी

सड़क सुनसान है, गश्ती सिपाही सो गए थककर
हमें भी रात की अंतिम घड़ी घर ले ही जाएगी

घरों का सुख कभी भीतर अहाते के नहीं मिलता
तुम्हें घर की ज़रूरत घर से बाहर ले ही जाएगी

तुम अपने आप पर विश्वास करना सीख लो वर्ना
परेशानी तुम्हें औरों के दर पर ले ही जाएगी

डा. गिरिराज शरण अग्रवाल

2 टिप्‍पणियां:

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

जिंदगी का आईना दिखाती गजल।

kshama ने कहा…

Behad sundar gazal !Aapke lekhan ko leke mai aur kya kah sakti hun?